रात तेरी नही रात मेरी नही
जिसने आँखो में कांटी वही पायेगा
कोई कूछ भी कहे ओर मैं चुप रहू
ये सलीका मुझे जाने कब आयेगा
शायरी
रात तेरी नही रात मेरी नही
जिसने आँखो में कांटी वही पायेगा
कोई कूछ भी कहे ओर मैं चुप रहू
ये सलीका मुझे जाने कब आयेगा